बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना सिर्फ नाम की, आधे से अधिक पैसे यहाँ कर दिए गए खर्च.
लड़कियों के ऊपर खर्च ही नहीं किये गए ये पैसे.
खुली आसमान के निचे बच्चे ख़ुशी ख़ुशी पढ़ते हुए. |
आपको वो दिन तो याद ही होगा जिस दिन प्रधानमंत्री जी ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' स्कीम को लांच किया था, अरे, नहीं याद है तो हम बता देते हैं : - 22 जनवरी 2015 का दिन, सोनिपथ (हरियाणा) से इस योजना को हरी झंडी दी गयी थी योजना का मकसद था बेटी के प्रति लोगो का सोच बदलना. बेटियों को भी आगे बढ़ना, अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ, सुरक्षा और उनकी बेहतर परवरिश करने में परिजनों की मदद करना. सीधे सीधे कहे तो बेटे और बेटियों को एक बराबर के पायदान में ला खड़ा करना.
इस योजना को जन जन तक पहुँचाने के लिए सरकार को भी खूब मेहनत करनी पड़ी, अखबारों में पुरे पन्ने के विज्ञापन, टीवी में प्रचार, बड़े बड़े पोस्टर, हर एक भाषण में इस स्कीम के बारे में लोगो को बतया गया, लेकिन सरकार इस योजना के प्रचार में इतना मशगुल हो गयी कि उनको इस बात का ध्यान ही नहीं रहा की स्कीम में आवंटित राशी के आधे से अधिक राशी को विज्ञापनों में खर्च कर दिया गया है.
दरअसल,बीजेपी के कपिल पाटिल, शिवकुमार उदासी, कांग्रेस के सुष्मिता देव, तेलंगाना राष्ट्र समिती के गुथा सुकेंदर रेड्डी और शिवसेना के संजय जाधव.ये 5 सांसदों ने इस स्कीम के बारे में सवाल किये थे . जिसके जवाब में केंद्रीय महिला और बाल विकास राज्य मंत्री, डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ने 4 जनवरी को डाटा पेश किया था.
इस डाटा के माध्यम से यह सामने आया की चार सालों में, 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' स्कीम के लिए जो फंड जारी हुआ था, उसका 56 फीसदी हिस्सा केवल उसके विज्ञापन पर ही खर्च हुआ है. सरकार ने इन चार सालों में इस स्कीम के लिए 648 करोड़ रुपए जारी किए थे, जिसमें से 364.66 करोड़ केवल विज्ञापन पर खर्च कर दिए गए. और जिस काम के लिए फण्ड आवंटित हुआ था उसमे महज एक-चौथाई रुपए. यानी स्कीम पर काम करने के लिए राज्यों और शहरों को, केवल 159 करोड़ रुपए ही मिले. और 19 फीसदी फंड सरकार ने रिलीज ही नहीं किया. ये पैसे अभी सरकार के पास ही हैं.
इस खर्च को देखने के बाद बाद सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना महज सिर्फ नामी योजना लगने लगी है.
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